आ: धरती कितना देती है
आ: धरती कितना देती है
मैंने छुटपन मे.....................तृष्णा को सींचा था
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों द्वारा कवि ने अबोध बचपन की एक एक घटना का वर्णन किया है की कैसे लालच से वशीभूत होकर उन्होंने मिटटी मे पैसे बोये थे !
भावार्थ - कवि ने अपने बचपन मे अज्ञानता वश लालच के वसीभूत होकर कुछ पैसे अपने आंगन की धरती मे बो दिए ताकि उन पैसों से अच्छे अच्छे पौधें उगेंगे और बाद मे उन पैसों से रुपयों की सुन्दर फसलें उगने लगेंगी और जब हवा चलगी तो उन रुपयों की खनक भी सुनाई देगी और उसके बाद कवि बहुत धनवान और मोटे सेठ बन जायेंगे किन्तु ऐसा कुछ भी न हुआ काफी इंतजार के बाद भी जब रुपयों की फसल नहीं हुई तो कवि ने सोचा की शायद धरती ही बंजर होगी और उस बाँझ मिटटी ने पैसों का एक भी बीज अंकुरित नहीं होने दिया जिससे वे काफी हताश हो गए किन्तु अबोध बचपन के सपने इतनी जल्दी निराशा मे परिवर्तित नहीं होते इसलिए उन पासिओं से पेड़ बनने का उन्होंने बहुत इंतजार किया किन्तु हाय रे अबोध और अज्ञान बचपन यह नहीं समझ पाया की उन्होंने गलत बीज बोये थे उन्होंने अपने लालच को तृष्णा रूपी जल लगाकर ममता का सिंचन किया था
अर्धशती हहराती ........................छोटी सी घटना को !
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों मे कवि ने बदलती ऋतुओं तथा समय का वर्णन किया है और फिर से पचास साल बाद कवि ने अपने आँगन मे अनजाने मे ही सेम के बीज बो दिए !
भावार्थ - कवि कहते है की बचपन की उस घटना के बाद जीवन के पचास यह ही बीत गए कितनी ही ऋतू आयी और चली गयी कितने ही बसंत , पतझर ,ग्रीष्म , वर्षा ऋतू आयी और चली गयी पेड़ो से पत्ते गिरे फिर उन पर नए पत्ते खिले और एक बार फिर सुगंध लिए काले बदल धरती पर बरस रहे थे तो कवि ऐसे ही अपने आंगन मे कुछ जिज्ञासा और कोतुहल से उन्होंने ऐसे ही आँगन की गीली मिटटी को हटाकर कुछ सेम के बीज बो दिए जैसे की कोई रत्न उन्होंने मिटटी मे बो दिया हो और फिर इस छोटी सी घटना को वे जल्दी ही भूल गए
और बात भी ..................रोप थे मैंने आँगन मे
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों मे कवि ने अपने द्वारा बो बीजों को अंकुरित देख कर काफी हर्षित होते है उसका चित्रण बड़े सी सुन्दर ढंग से किया है
भावार्थ - बारिश के दिनों मे यु ही अपने आंगन मे सेम के बीज बोने की छोटी सी घटना को कवि जल्दी ही भूल गए शायद उन्होंने इसको इतना महत्व ही नहीं दिया किन्तु एक दिन संध्या को जब वे अपने आंगन मे टहल रहे थे तो उन्होंने देखा की आंगन के कोने मे सेम की लता फ़ैल गयी है जिस पर कई बीज अंकुरित हो गए है जिसे देख कर कवि की हर्ष और आश्चर्य की कोई सीमा न रही उन्हें उसे देख कर ऐसा लग रहा था कई कई नवागत छोटी छोटी सेना छाता ताने खड़ी हो जैसे की अभी अभी पक्षियों के बच्चे अंडे तोड़ कर निकले हो और उड़ने की तैयारियां कर रहे हो वे क्षणभर को अपलक उन्हें देखते रहे की फिर अक्समात उन्हें याद आया की कुछ दिन पहले यु ही उन्होंने अपने आंगन मे सेम के बीज बो दिए थे
और उन्ही ..................................कैसे बढ़ता है
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों मे कवि ने सेम के अंकुरित बीजो को देखकर अपनी प्र्सनता का वर्णन किया है
भावार्थ - कवि कहते है की इन अंकुरित बीजो सी निकल रहे पौधों की पलटन को देखकर ऐसा लगता है की जैसे की कोई बोने पौधों की फौज छाता ताने आँगन मे एक साथ बढ़ रही हो एक साथ फैली हुई बेलों ने अब झाड़ी का रूप ले लिया है कवि उन्हें हर्षित मन से देखते हुए कहते है की अनगिनत पत्तों की हरी बेल देख कर ऐसा लगता है की किसी ने आंगन मे शामियाने टांग दिए हो कवि ने बेलों के लिए अपने आंगन मे बांस की छोटी सी छत बना दी जिसका सहारा लेकर अनेक अंकुर उस पर फूटने लगे कवि इस प्रकार इनकी वंश वृद्धि को देखकर काफी हैरान रह जाते है
छोटे तारों ....................वैसा ही पाएंगे
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों मे कवि ने आँगन फैली हुई सेम की बेलों का वर्णन बहुत ही सुन्दर दांग से किया है साथ ही साथ वे ये भी कहते है की यह धरती हमें कितना देती है
भावार्थ - कवि कहते है की फैली हुई सेम की लताएँ फूलों और तारों के समान बहुत ही सुन्दर लग रही है कवि बहुत ही प्रस्सन होते हुए कहते की यह धरती अपने पुत्रों को कितना देती है इस बात से अनजान जब उन्होंने अज्ञानतावश गलत बीज धरती मे बो दिए थे तब वह इस मिटटी के महत्व को समझ नहीं पाए थे वह अनजान थे नहीं जानते थे की कौन से बीज मिटटी मे बोने चाहिए किन्तु बीतते समय के साथ आज उन्होंने यह भली भांति समझ लिया है यह धरती माँ तो रत्नगर्भा है इसमें लालच को नहीं बोया जाता अगर लालच बोएंगे तो हमें कुछ प्राप्त नहीं होगा अगर हमें मानवता की सुनहरी फसल उगानी है तो हमें सद्भावना , सहयोग ,परिश्रम तथा प्रेम की फसल बोनी होगी प्रकृति का नियम है जैसा बोयेंगे वैसे ही पायंगे एक दूसरे के प्रति प्रेम और सहयोग की भावना रखेंगे तो वही हमें मिलेगा तभी कुशली की फसल धरती पर लेहरायगी मनुष्य के सहयोग और परिश्रम से सर्व्रत्र धरती धन धान्य से परिपूर्ण हो जाएगी इसके लिए मनुष्य मे आपसी सहयोग तथा सद्भावना उत्पन्न करना परम आवश्यक है
प्रश्न - कवि ने बचपन मे पृथ्वी मे क्या बोया था और वर्षों के बाद बड़े होकर क्या बोया था ? दोनों िस्थिथियों का क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर - कवि बचपन मे अनजान और अबोध थे और उसी बचपन मे अज्ञानता वश लालच के वसीभूत होकर कुछ पैसे अपने आंगन की धरती मे बो दिए ताकि उन पैसों से अच्छे अच्छे पौधें उगेंगे और बाद मे उन पैसों से रुपयों की सुन्दर फसलें उगने लगेंगी और जब हवा चलगी तो उन रुपयों की खनक भी सुनाई देगी और उसके बाद कवि बहुत धनवान और मोटे सेठ बन जायेंगे किन्तु ऐसा कुछ भी न हुआ काफी इंतजार के बाद भी जब रुपयों की फसल नहीं हुई तो कवि ने सोचा की शायद धरती ही बंजर होगी और उस बाँझ मिटटी ने पैसों का एक भी बीज अंकुरित नहीं होने दिया जिससे वे काफी हताश हो गए किन्तु अबोध और अज्ञान बचपन यह नहीं समझ पाया की उन्होंने गलत बीज बोये थे उन्होंने अपने लालच को तृष्णा रूपी जल लगाकर ममता का सिंचन किया था
बचपन की उस घटना के बाद जीवन के पचास यह ही बीत गए कितनी ही ऋतू आयी और चली गयी कितने ही बसंत , पतझर ,ग्रीष्म , वर्षा ऋतू आयी और चली गयी पेड़ो से पत्ते गिरे फिर उन पर नए पत्ते खिले और एक बार फिर सुगंध लिए काले बदल धरती पर बरस रहे थे तो कवि ऐसे ही अपने आंगन मे कुछ जिज्ञासा और कोतुहल से उन्होंने ऐसे ही आँगन की गीली मिटटी को हटाकर कुछ सेम के बीज बो दिए और इस छोटी सी घटना को कवि जल्दी ही भूल गए शायद उन्होंने इसको इतना महत्व ही नहीं दिया किन्तु एक दिन संध्या को जब वे अपने आंगन मे टहल रहे थे तो उन्होंने देखा की आंगन के कोने मे सेम की लता फ़ैल गयी है जिस पर कई बीज अंकुरित हो गए है जिसे देख कर कवि की हर्ष और आश्चर्य की कोई सीमा न रही कवि बहुत ही प्रस्सन होते हुए कहते की यह धरती अपने पुत्रों को कितना देती है इस बात से अनजान जब उन्होंने अज्ञानतावश गलत बीज धरती मे बो दिए थे तब वह इस मिटटी के महत्व को समझ नहीं पाए थे वह अनजान थे नहीं जानते थे की कौन से बीज मिटटी मे बोने चाहिए किन्तु बीतते समय के साथ आज उन्होंने यह भली भांति समझ लिया है यह धरती माँ तो रत्नगर्भा है इसमें लालच को नहीं बोया जाता अगर लालच बोएंगे तो हमें कुछ प्राप्त नहीं होगा अगर हमें मानवता की सुनहरी फसल उगानी है तो हमें सद्भावना , सहयोग ,परिश्रम तथा प्रेम की फसल बोनी होगी प्रकृति का नियम है जैसा बोयेंगे वैसे ही पायंगे एक दूसरे के प्रति प्रेम और सहयोग की भावना रखेंगे तो वही हमें मिलेगा तभी कुशली की फसल धरती पर लेहरायगी मनुष्य के सहयोग और परिश्रम से सर्व्रत्र धरती धन धान्य से परिपूर्ण हो जाएगी इसके लिए मनुष्य मे आपसी सहयोग तथा सद्भावना उत्पन्न करना परम आवश्यक है
मैंने छुटपन ...........................सब धूल हो गए
१. यदि धरती से पैसे उग आते तो कवि क्या बन जाता ?
२. बचपन मे कवि ने क्या सोचा था क्या किया ?
३. कवि ने मिटटी मे जो कुछ बोया क्या उसका फल उसे मिला ?
४.प्रस्तुत पंक्तियों का अर्थ लिखिए ?
उत्तर
१.धरती से पैसे उग आते तो कवि मोटा सेठ बन जाता !
२.बचपन मे अज्ञानता वश लालच के वसीभूत होकर कुछ पैसे अपने आंगन की धरती मे बो दिए ताकि उन पैसों से अच्छे अच्छे पौधें उगेंगे और बाद मे उन पैसों से रुपयों की सुन्दर फसलें उगने लगेंगी
३.नहीं कवि ने जैसा सोचा था वैसा नहीं हुआ काफी इंतजार के बाद भी जब रुपयों की फसल नहीं हुई तो कवि ने सोचा की शायद धरती ही बंजर होगी
४.कवि ने अपने बचपन मे अज्ञानता वश लालच के वसीभूत होकर कुछ पैसे अपने आंगन की धरती मे बो दिए ताकि उन पैसों से अच्छे अच्छे पौधें उगेंगे और बाद मे उन पैसों से रुपयों की सुन्दर फसलें उगने लगेंगी और जब हवा चलगी तो उन रुपयों की खनक भी सुनाई देगी और उसके बाद कवि बहुत धनवान और मोटे सेठ बन जायेंगे किन्तु ऐसा कुछ भी न हुआ काफी इंतजार के बाद भी जब रुपयों की फसल नहीं हुई तो कवि ने सोचा की शायद धरती ही बंजर होगी और उस बाँझ मिटटी ने पैसों का एक भी बीज अंकुरित नहीं होने दिया जिससे वे काफी हताश हो गए किन्तु अबोध बचपन के सपने इतनी जल्दी निराशा मे परिवर्तित नहीं होते इसलिए उन पासिओं से पेड़ बनने का उन्होंने बहुत इंतजार किया किन्तु हाय रे अबोध और अज्ञान बचपन यह नहीं समझ पाया की उन्होंने गलत बीज बोये थे उन्होंने अपने लालच को तृष्णा रूपी जल लगाकर ममता का सिंचन किया था
मैंने छुटपन मे.....................तृष्णा को सींचा था
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों द्वारा कवि ने अबोध बचपन की एक एक घटना का वर्णन किया है की कैसे लालच से वशीभूत होकर उन्होंने मिटटी मे पैसे बोये थे !
भावार्थ - कवि ने अपने बचपन मे अज्ञानता वश लालच के वसीभूत होकर कुछ पैसे अपने आंगन की धरती मे बो दिए ताकि उन पैसों से अच्छे अच्छे पौधें उगेंगे और बाद मे उन पैसों से रुपयों की सुन्दर फसलें उगने लगेंगी और जब हवा चलगी तो उन रुपयों की खनक भी सुनाई देगी और उसके बाद कवि बहुत धनवान और मोटे सेठ बन जायेंगे किन्तु ऐसा कुछ भी न हुआ काफी इंतजार के बाद भी जब रुपयों की फसल नहीं हुई तो कवि ने सोचा की शायद धरती ही बंजर होगी और उस बाँझ मिटटी ने पैसों का एक भी बीज अंकुरित नहीं होने दिया जिससे वे काफी हताश हो गए किन्तु अबोध बचपन के सपने इतनी जल्दी निराशा मे परिवर्तित नहीं होते इसलिए उन पासिओं से पेड़ बनने का उन्होंने बहुत इंतजार किया किन्तु हाय रे अबोध और अज्ञान बचपन यह नहीं समझ पाया की उन्होंने गलत बीज बोये थे उन्होंने अपने लालच को तृष्णा रूपी जल लगाकर ममता का सिंचन किया था
अर्धशती हहराती ........................छोटी सी घटना को !
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों मे कवि ने बदलती ऋतुओं तथा समय का वर्णन किया है और फिर से पचास साल बाद कवि ने अपने आँगन मे अनजाने मे ही सेम के बीज बो दिए !
भावार्थ - कवि कहते है की बचपन की उस घटना के बाद जीवन के पचास यह ही बीत गए कितनी ही ऋतू आयी और चली गयी कितने ही बसंत , पतझर ,ग्रीष्म , वर्षा ऋतू आयी और चली गयी पेड़ो से पत्ते गिरे फिर उन पर नए पत्ते खिले और एक बार फिर सुगंध लिए काले बदल धरती पर बरस रहे थे तो कवि ऐसे ही अपने आंगन मे कुछ जिज्ञासा और कोतुहल से उन्होंने ऐसे ही आँगन की गीली मिटटी को हटाकर कुछ सेम के बीज बो दिए जैसे की कोई रत्न उन्होंने मिटटी मे बो दिया हो और फिर इस छोटी सी घटना को वे जल्दी ही भूल गए
और बात भी ..................रोप थे मैंने आँगन मे
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों मे कवि ने अपने द्वारा बो बीजों को अंकुरित देख कर काफी हर्षित होते है उसका चित्रण बड़े सी सुन्दर ढंग से किया है
भावार्थ - बारिश के दिनों मे यु ही अपने आंगन मे सेम के बीज बोने की छोटी सी घटना को कवि जल्दी ही भूल गए शायद उन्होंने इसको इतना महत्व ही नहीं दिया किन्तु एक दिन संध्या को जब वे अपने आंगन मे टहल रहे थे तो उन्होंने देखा की आंगन के कोने मे सेम की लता फ़ैल गयी है जिस पर कई बीज अंकुरित हो गए है जिसे देख कर कवि की हर्ष और आश्चर्य की कोई सीमा न रही उन्हें उसे देख कर ऐसा लग रहा था कई कई नवागत छोटी छोटी सेना छाता ताने खड़ी हो जैसे की अभी अभी पक्षियों के बच्चे अंडे तोड़ कर निकले हो और उड़ने की तैयारियां कर रहे हो वे क्षणभर को अपलक उन्हें देखते रहे की फिर अक्समात उन्हें याद आया की कुछ दिन पहले यु ही उन्होंने अपने आंगन मे सेम के बीज बो दिए थे
और उन्ही ..................................कैसे बढ़ता है
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों मे कवि ने सेम के अंकुरित बीजो को देखकर अपनी प्र्सनता का वर्णन किया है
भावार्थ - कवि कहते है की इन अंकुरित बीजो सी निकल रहे पौधों की पलटन को देखकर ऐसा लगता है की जैसे की कोई बोने पौधों की फौज छाता ताने आँगन मे एक साथ बढ़ रही हो एक साथ फैली हुई बेलों ने अब झाड़ी का रूप ले लिया है कवि उन्हें हर्षित मन से देखते हुए कहते है की अनगिनत पत्तों की हरी बेल देख कर ऐसा लगता है की किसी ने आंगन मे शामियाने टांग दिए हो कवि ने बेलों के लिए अपने आंगन मे बांस की छोटी सी छत बना दी जिसका सहारा लेकर अनेक अंकुर उस पर फूटने लगे कवि इस प्रकार इनकी वंश वृद्धि को देखकर काफी हैरान रह जाते है
छोटे तारों ....................वैसा ही पाएंगे
प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियों मे कवि ने आँगन फैली हुई सेम की बेलों का वर्णन बहुत ही सुन्दर दांग से किया है साथ ही साथ वे ये भी कहते है की यह धरती हमें कितना देती है
भावार्थ - कवि कहते है की फैली हुई सेम की लताएँ फूलों और तारों के समान बहुत ही सुन्दर लग रही है कवि बहुत ही प्रस्सन होते हुए कहते की यह धरती अपने पुत्रों को कितना देती है इस बात से अनजान जब उन्होंने अज्ञानतावश गलत बीज धरती मे बो दिए थे तब वह इस मिटटी के महत्व को समझ नहीं पाए थे वह अनजान थे नहीं जानते थे की कौन से बीज मिटटी मे बोने चाहिए किन्तु बीतते समय के साथ आज उन्होंने यह भली भांति समझ लिया है यह धरती माँ तो रत्नगर्भा है इसमें लालच को नहीं बोया जाता अगर लालच बोएंगे तो हमें कुछ प्राप्त नहीं होगा अगर हमें मानवता की सुनहरी फसल उगानी है तो हमें सद्भावना , सहयोग ,परिश्रम तथा प्रेम की फसल बोनी होगी प्रकृति का नियम है जैसा बोयेंगे वैसे ही पायंगे एक दूसरे के प्रति प्रेम और सहयोग की भावना रखेंगे तो वही हमें मिलेगा तभी कुशली की फसल धरती पर लेहरायगी मनुष्य के सहयोग और परिश्रम से सर्व्रत्र धरती धन धान्य से परिपूर्ण हो जाएगी इसके लिए मनुष्य मे आपसी सहयोग तथा सद्भावना उत्पन्न करना परम आवश्यक है
प्रश्न - कवि ने बचपन मे पृथ्वी मे क्या बोया था और वर्षों के बाद बड़े होकर क्या बोया था ? दोनों िस्थिथियों का क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर - कवि बचपन मे अनजान और अबोध थे और उसी बचपन मे अज्ञानता वश लालच के वसीभूत होकर कुछ पैसे अपने आंगन की धरती मे बो दिए ताकि उन पैसों से अच्छे अच्छे पौधें उगेंगे और बाद मे उन पैसों से रुपयों की सुन्दर फसलें उगने लगेंगी और जब हवा चलगी तो उन रुपयों की खनक भी सुनाई देगी और उसके बाद कवि बहुत धनवान और मोटे सेठ बन जायेंगे किन्तु ऐसा कुछ भी न हुआ काफी इंतजार के बाद भी जब रुपयों की फसल नहीं हुई तो कवि ने सोचा की शायद धरती ही बंजर होगी और उस बाँझ मिटटी ने पैसों का एक भी बीज अंकुरित नहीं होने दिया जिससे वे काफी हताश हो गए किन्तु अबोध और अज्ञान बचपन यह नहीं समझ पाया की उन्होंने गलत बीज बोये थे उन्होंने अपने लालच को तृष्णा रूपी जल लगाकर ममता का सिंचन किया था
बचपन की उस घटना के बाद जीवन के पचास यह ही बीत गए कितनी ही ऋतू आयी और चली गयी कितने ही बसंत , पतझर ,ग्रीष्म , वर्षा ऋतू आयी और चली गयी पेड़ो से पत्ते गिरे फिर उन पर नए पत्ते खिले और एक बार फिर सुगंध लिए काले बदल धरती पर बरस रहे थे तो कवि ऐसे ही अपने आंगन मे कुछ जिज्ञासा और कोतुहल से उन्होंने ऐसे ही आँगन की गीली मिटटी को हटाकर कुछ सेम के बीज बो दिए और इस छोटी सी घटना को कवि जल्दी ही भूल गए शायद उन्होंने इसको इतना महत्व ही नहीं दिया किन्तु एक दिन संध्या को जब वे अपने आंगन मे टहल रहे थे तो उन्होंने देखा की आंगन के कोने मे सेम की लता फ़ैल गयी है जिस पर कई बीज अंकुरित हो गए है जिसे देख कर कवि की हर्ष और आश्चर्य की कोई सीमा न रही कवि बहुत ही प्रस्सन होते हुए कहते की यह धरती अपने पुत्रों को कितना देती है इस बात से अनजान जब उन्होंने अज्ञानतावश गलत बीज धरती मे बो दिए थे तब वह इस मिटटी के महत्व को समझ नहीं पाए थे वह अनजान थे नहीं जानते थे की कौन से बीज मिटटी मे बोने चाहिए किन्तु बीतते समय के साथ आज उन्होंने यह भली भांति समझ लिया है यह धरती माँ तो रत्नगर्भा है इसमें लालच को नहीं बोया जाता अगर लालच बोएंगे तो हमें कुछ प्राप्त नहीं होगा अगर हमें मानवता की सुनहरी फसल उगानी है तो हमें सद्भावना , सहयोग ,परिश्रम तथा प्रेम की फसल बोनी होगी प्रकृति का नियम है जैसा बोयेंगे वैसे ही पायंगे एक दूसरे के प्रति प्रेम और सहयोग की भावना रखेंगे तो वही हमें मिलेगा तभी कुशली की फसल धरती पर लेहरायगी मनुष्य के सहयोग और परिश्रम से सर्व्रत्र धरती धन धान्य से परिपूर्ण हो जाएगी इसके लिए मनुष्य मे आपसी सहयोग तथा सद्भावना उत्पन्न करना परम आवश्यक है
मैंने छुटपन ...........................सब धूल हो गए
१. यदि धरती से पैसे उग आते तो कवि क्या बन जाता ?
२. बचपन मे कवि ने क्या सोचा था क्या किया ?
३. कवि ने मिटटी मे जो कुछ बोया क्या उसका फल उसे मिला ?
४.प्रस्तुत पंक्तियों का अर्थ लिखिए ?
उत्तर
१.धरती से पैसे उग आते तो कवि मोटा सेठ बन जाता !
२.बचपन मे अज्ञानता वश लालच के वसीभूत होकर कुछ पैसे अपने आंगन की धरती मे बो दिए ताकि उन पैसों से अच्छे अच्छे पौधें उगेंगे और बाद मे उन पैसों से रुपयों की सुन्दर फसलें उगने लगेंगी
३.नहीं कवि ने जैसा सोचा था वैसा नहीं हुआ काफी इंतजार के बाद भी जब रुपयों की फसल नहीं हुई तो कवि ने सोचा की शायद धरती ही बंजर होगी
४.कवि ने अपने बचपन मे अज्ञानता वश लालच के वसीभूत होकर कुछ पैसे अपने आंगन की धरती मे बो दिए ताकि उन पैसों से अच्छे अच्छे पौधें उगेंगे और बाद मे उन पैसों से रुपयों की सुन्दर फसलें उगने लगेंगी और जब हवा चलगी तो उन रुपयों की खनक भी सुनाई देगी और उसके बाद कवि बहुत धनवान और मोटे सेठ बन जायेंगे किन्तु ऐसा कुछ भी न हुआ काफी इंतजार के बाद भी जब रुपयों की फसल नहीं हुई तो कवि ने सोचा की शायद धरती ही बंजर होगी और उस बाँझ मिटटी ने पैसों का एक भी बीज अंकुरित नहीं होने दिया जिससे वे काफी हताश हो गए किन्तु अबोध बचपन के सपने इतनी जल्दी निराशा मे परिवर्तित नहीं होते इसलिए उन पासिओं से पेड़ बनने का उन्होंने बहुत इंतजार किया किन्तु हाय रे अबोध और अज्ञान बचपन यह नहीं समझ पाया की उन्होंने गलत बीज बोये थे उन्होंने अपने लालच को तृष्णा रूपी जल लगाकर ममता का सिंचन किया था
Very nice ma'am thx
ReplyDeleteIs this topic true in today's world is the question can I get a answer
ReplyDeleteThank you mam
ReplyDeleteNoiiiiice
ReplyDeleteThx
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