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Monday, 21 August 2017

FAMOUS INDIAN TEMPLE(HISTORY OF DAKINESWAR KALI TEMPLE)

MAA DAKINESWAR KALI

कला और संस्कृति की नगरी है कोलकाता यहाँ पर मशहूर है बारो मासे तेरो परबोंन मतलब यहाँ हर महीने कोई न कोई त्यौहार या पूजा मनाई जाती है यहां सबसे ज्यादा माँ दुर्गा और माँ काली की पूजा की जाती है आज हम कोलकाता में माँ काली का सबसे बड़ा मंदिर जो दक्षिणेश्वर काली मंदिर के नाम से प्रसिद्द है जो हुगली (गंगा का दुसरा नाम) नदी के तट पर बेलूर मठ के पास स्तिथ है यह मंदिर अध्यांत्म का प्रमुख केंद्र माना जाता है साथ ही देश विदेश से काली माँ के भक्तो की भारी संख्या भी दर्शन करने यहा आती है | क्योंकि  गुरु रामकृष्ण परमहंस
और उनके परम शिष्य श्री विवेकानंद जी को  इस मंदिर मे माँ काली ने साक्षात्  दर्शन दिए थे  यह भारत के  ५१ शक्तिपीठो मे से एक है  । कहते हैं इस जगह पर माता सती के दायें पैर की चार उंगलियां गिरी थीं।

तो चलिए जानते है कुछ ऐसे तथ्य जो इस मंदिर से जुड़े हुए है ----------



दक्षिणेश्वर काली मंदिर
कोलकाता। 1847 की बात है। देश में अंग्रेजों का शासन था। पश्चिम बंगाल में जान बाजार की रानी रासमनी नाम की एक बहुत ही अमीर विधवा थी। वह एक शूद्र जमींदार की विधवा थी कहा जाता है जमींदार साहब खुद माँ काली के बहुत बड़े भक्त थे और उनका मंदिर बनाने की इच्छा रखते थे । इसलिए अपने पति की मृत्यु के बाद उनके मन में सभी तीर्थों के दर्शन करने का खयाल आया। खुद रानी रासमनी भी देवी माता की बहुत बड़ी उपासक थी। इसलिए उन्होंने सोचा कि वो अपनी तीर्थ यात्रा की शुरुआत वराणसी से करेंगी और वहीं रहकर देवी का कुछ दिनों तक ध्यान करेंगी। उन दिनों वाराणसी और कोलकाता के बीच कोई रेल लाइन नहीं थी। केवल नाव के रस्ते से ही बनारस जाया जा सकता था ।
 मंदिर प्रांगण
किन्तु जाने के ठीक एक रात पहले रानी  को रात में एक सपना आया। सपने में माँ  काली स्वयं  प्रकट हुई और उनसे कहा कि वाराणसी जाने की कोई जरूरत नहीं है। आप गंगा के किनारे मेरी प्रतिमा को स्थापित करिए। एक खूबसूरत मंदिर बनाइए। मैं उस मंदिर की प्रतिमा में खुद प्रकट होकर श्रद्धालुओं की पूजा को स्वीकार करुंगी।इसलिए सुबह होते ही वाराणसी जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया और गंगा के किनारे मां काली के मंदिर के लिए जगह की तलाश शुरू कर दी गई। कहते हैं कि जब रानी इस घाट पर गंगा के किनारे जगह की तलाश करते करते आईं तो उनके अंदर से एक आवाज आई कि हां इसी जगह पर मंदिर का निर्माण होना चाहिए।फिर तो  जगह खरीद ली गई और मंदिर का काम तेजी से शुरु हो गया। ये बात 1847 की है और मंदिर का काम पूरा हुआ 1855 यानी कुल आठ सालों में। ३१ मई १८५५ को स्नान यात्रा दिवस के दिन जो की हिन्दुओ का एक बहुत पवित्र दिन है मंदिर मे माँ की मूर्ति की स्थापना की गयी जिस के पीछे भी कुछ रोचक रहस्य जुड़े हुए है.



मूर्ति स्थापना के दिन पुरे देश से एक लाख ब्राह्मणो को बुलाया गया किन्तु कोई भी ब्राह्मण मंदिर मे पूजा करने तथा कुछ भी अन्न ग्रहण करने के लिए तैयार नहीं हुआ क्योंकि रानी एक शूद्र जमींदार विधवा थी । तब रानी इस समस्या  को अपने गुरु रामकुमार चटोपाध्य को बताया तो उन्होने कहा की वो यह मंदिर किसी ब्राह्मण को दान कर दे इस समस्या से निबटा जा सकता है रानी ने तुरंत ही मंदिर रामकुमार जी को दान करके उन्हें इस मंदिर का पुजारी बना दिया किन्तु  १८५६ में रामकुमार के मृत्यु के पश्चात रामकृष्ण को काली मंदिर में पुरोहित के तौर पर नियुक्त किया गया कहा जाता हैं की श्री रामकृष्ण को काली माता के दर्शन ब्रम्हांड की माता के रूप में हुआ था।





 दक्षिणेश्वर माँ काली का मुख्य मंदिर है।  काली माँ का मंदिर नवरत्न की तरह निर्मित है और यह 46 फुट चौड़ा तथा 100 फुट ऊँचा है।मंदिर के पास पवित्र गंगा नदी जो कि बंगाल में हुगली नदी के नाम से जानी जाती है, बहती है। इस मंदिर में 12 गुंबद  है ।माँ काली का मंदिर विशाल इमारत के रूप में चबूतरे पर स्थित है। इसमें सीढि़यों के माध्यम से प्रवेश कर सकते हैं। दक्षिण की ओर स्थित यह मंदिर तीन मंजिला है। ऊपर की दो मंजिलों पर नौ गुंबद समान रूप से फैले हुए हैं। गुंबदों की छत पर सुन्दर आकृतियाँ बनाई गई हैं। मंदिर के  भीतरी भाग में चाँदी से बनाए गए कमल के फूल जिसकी हजार पंखुड़ियाँ हैं, पर माँ काली शस्त्रों सहित भगवान शिव के ऊपर खड़ी हुई हैं।


बारह शिव के मंदिर



मंदिर की उत्तर दिशा में राधाकृष्ण का दालान स्थित है।  चाँदनी स्नान घाट के चारों तरफ बारह शिव के मंदिर हैं। छ:  छ: मंदिर घाट के दोनों ओर स्थित हैं।दक्षिणेश्वर माँ काली का मंदिर विश्व में सबसे प्रसिद्ध है। भारत के सांस्कृतिक धार्मिक तीर्थ स्थलों में माँ काली का मंदिर सबसे प्राचीन माना जाता है।










पर्यटक साल में हर समय यहाँ पर भ्रमण करने आ सकते हैं। हर प्रमुख शहरों से कोलकाता जाया जा सकता है। स्थानीय साधन कोलकाता  बस, मेट्रो रेल, साइकल रिक्शा तथा ऑटो रिक्शा हैं। कोलकाता रेलमार्ग तथा वायुमार्ग के माध्यम से भी सभी प्रमुख बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।

मंदिर के खुलने का समयप्रातःकाल 5.30 से 10.30 तक। संध्याकाल 4.30 से 7.30 तक।

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