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Tuesday, 5 September 2017

SAARA AAKASH*****सारा आकाश*****


                 हिंदी गद्य की अनेक विधायें होती है जैसे - निबंध , उपन्यास , कहानी , नाटक , आतमकथा , एकांकी , रिपोर्ट आदि । इन्ही में से एक है उपन्यास । उपन्यास कहानी का ही रंजीत ..........................

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 इस ebook के माध्यम से आपको सारा आकाश उपन्यास का सारांश , उद्देश्य ,पात्र चरित्र चित्रण और परीक्षा से सम्बंधित प्रश्न उत्तर ,लेखक का परिचय सभी का संक्षिप्त विवरण प्राप्त होगा
* यह उपन्यास क्लास ११ तथा १२ के ISC पाठ्यक्रम
में आता है इसके लेखक है राजेंद्र यादव .


उपन्यासकार का परिचय --- राजेंद्र यादव का जन्म आगरा में २८ अगस्त १९२९ में हुआ था और वही उनकी प्राम्भिक शिक्षा भी हुई । १९४९ में इन्होने B.A पास किया और फिर १९५१ में आगरा विश्वविधालय से हिंदी में M.A किया ।इनका पहला उपन्यास है प्रेत बोलते है १९५१ में प्रकाशित हुआ १९६० में सारा आकाश लिखा ।१९६९ में फिल्म निर्देशक बासु चटर्जी ने इस पैर फिल्म भी बनाई है ।  २८ अक्टूबर २०१३ में लेखक का दिल्ली में देहांत हुआ । यह अपने लेखन कार्य के साथ संपादन का भी कार्य करते थे ।

सारा आकाश उपन्यास मे उपन्यासकार ने बड़े सरल भाषा मे यथार्थ और आदर्श का समावेश किया है सरल पात्रों के द्वारा समाज मे फैली बुराइयों जैसे दहेज़ न मिलने के कटु अनुभव , गरीब परिवार की मुश्किलें , कम उम्र मे विवाह करने से पुत्री के कष्ट , बेरोजगार और विद्यार्थी का विवाह कर देने से उनके समाने आने वाली मुसीबतें , तथा एक परिवार मे निरन्तर चलते हुए विवाद का वर्णन बड़े ही सरल तरीके से किया है .

पात्र परिचय -
बाबूजी - बाबूजी परिवार के मुखिया है उनकी पत्नी को सभी अम्माजी कहते है । उन्हें पेंशन मिलती है वे परिवार               के  सभी सदस्यों को निर्देश देते है पुरे संयुक्त परिवार को जोड़े रखते है ।




उपन्यासकार ने सारा आकाश उपन्यास बहुत ही साधारण बोलचाल की भाषा में लिखा है । उन्होंने बहुत ही साधारण और आम परिवार के पात्रों द्वारा समाज में फैली कुरीतियों जैसे दहेज़ न मिलने पर कटु अनुभव , निम्न माध्यम वर्गीय संयुक्त परिवार की मुश्किलें , कम उम्र में विवाह कर देने के कटु अनुभव , बेरोजगार तथा विद्यार्थी जीवन में ही विवाह कर देने से उनके सामने आने वाली मुश्किलें , एक संयुक्त परिवार में निरन्तर चलने वाले विवाद से उत्पन्न अशांति से व्यक्ति विशेष की मानसिक अवस्था के बारें में बतातें है । और वह अपने इस उद्देश्य  में सफल भी हुए है .
समर इस उपन्यास का मुख्य पात्र है वह एक निम्न माध्यम वर्गीय परिवार से है उसकी समस्या यह है की वह पढ़ना चाहता है
आजकल की बहुऍं किस प्रकार से अपनी दहेज़ न लाने से अपने ससुराल वालो की बातों को झेलते हुए चुपचाप रह कर सारे काम करती है उस पर अगर वह पढ़ी लिखी है तो यह तो उसका एक दुर्गुण बन जाता है उपन्यासकार ने बड़ी ही सरल भाषा में स्पष्ट किया है धनाभाव
समर का चरित्र - समर उपन्यास का नायक है और प्रभा का पति अभी उसका विधार्थी जीवन ही चल रहा था की उसकी इच्छा के विरुद्ध उसका विवाह कर दिया जाता है इसलिए वह अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ सामीप्य नहीं बना पता है .समर शुरू से निराशावादी रहा है अन्य युवकों की भांति उसमे उत्साह और उमंग की कमी है .वह शादी को एक बोझ मानता है 
समर एक शांत तथा पुराने विचारों वाला युवक है तथा शान्ति उसे पसंद है इसलिए वह घर में होने वाले रोज रोज के झगड़ों से बहुत परेशां रहता है वह बहुत ही साधारण कपडे पहनता है 
सब मिलाकर समर का चरित्र मेधावी , निराशावादी , स्वाभिमानी , और अपने फैसले पर अडिग रहने वाला है 

शिरीष एक सरकारी कार्यालय में क्लर्क है .यद्यपि वह डेढ़ सौ रूपए वेतन वाले बाबू हैं तथापि उनमे बौद्धिकता है .समर हो या कोई और जो भी उसके संपर्क में आता है उससे प्रभावित हो जाता है . वह महीन मखमल का कुरता और पायजामा पहनता है. शिरीष अत्यंत व्यवहार कुशल है .वह युवक होकर भी यथार्थवाद विश्लेषण करता और अपना निष्कर्ष प्रस्तुत करता है .


संक्षेप में शिरीष के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएं दिखाई देती है :-

१.विचारक :- 

शिरीष प्रत्येक विषय पर विचार करता है और निष्कर्ष प्रस्तुत करता है . आधुनिक युवकों की तरह वह पुस्तकों और महापुरुषों के आदर्श वाक्यों को ओढ़ता बिछाता नहीं है . वह सभी विषयों को अपनी दृष्टि को अपनी दृष्टि से देखता है . उसके नारी सम्बन्धी विचार महत्वपूर्ण हैं . वह नारी के तलाक़ सम्बन्धी अधिकार का समर्थक है वह कहता है कि इस अधिकार से वंचित होने के कारण प्राय : नारियाँ घुटन की ज़िन्दगी काट रही है . नारी की यौन सम्बन्धी भूख उनकी दृष्टि में हमेशा रहती है और आज भी बनी हुई है .

२. अध्ययनशील व्यक्ति :- 

शिरीष अध्ययनशील व्यक्ति है . आज के युवकों की तरह वह थोथा ज्ञान रखकर किसी से बहस नहीं करता है . हर विषय का उसे अच्छा ज्ञान है . सभी विषय और वास्तु के सम्बन्ध में उनका निश्चित मत है .उसके विचार से उसके दोस्त - मित्र सभी प्रभावित है .यद्यपि उसका ज्ञान परिपक्व है फिर भी उसमें अहंभाव नहीं है . वह अपने विचार को पूर्ण नहीं मानता है - 

" मैं तो भाई किसी चीज़ को पूर्ण नहीं मानता हूँ .हर चीज़ विकास करती है . इसीलिए पूर्ण ज्ञानी कोई नहीं होता है मैं तो उसे ज्ञानी कहता हूँ जिसमें जानने की इच्छा हो .जब तक यह इच्छा है ,तभी तक वह ज्ञानी है .इसके बाद लाईब्रेरी की किताब और उसमें कोई अंतर नहीं ."

३. यथार्थवादी :-

 सामान्यतया युवक आदर्श जगत में विश्वास करते हैं .परन्तु शिरीष भाई यथार्थवादी है . वह आदर्शवाद पर मज़ाक बनाते हैं. शिरीष की मान्यता है कि सिधांत को ढ़ोने वाला व्यक्ति सुखी नहीं रह सकता है . अतः हमें सिधांत और उससे उत्पन्न भावुकता का पथ त्याग कर व्यवहार मार्ग को अपनाना चाहिए .समाज में देखा गया है कि व्यावहारिक व्यक्ति हर अवसर पर लाभ उठा लेता है और सिधान्तवादी कहता फिरता है कि आत्मा गवाही नहीं दे रही है .स्वामी विवेकानंद का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए वह कहते हैं कि जिस कार्य को मनुष्य आसानी से दो पैसे में कर सकता है उसके लिए वर्षों तक जंगल में तपस्या करने से क्या लाभ है .वह संयुक्त परिवार कि व्यवस्था को भी कोरा सिधांत मानकर उसकी आलोचना करते हैं .उनका तर्क है कि हम संयुक्त परिवार व्यवस्था को तोड़ें परन्तु बँटवारा करके अलग - अलग भी नहीं रहें . अवश्यकता है कि सभी कार्य क्षेत्र में अपने - अपने परिवार के साथ रहेंगे तो प्रेम भाव भी बना रहेगा और एक दूसरे के काम भी आ सकते हैं .

४. व्यापक दृष्टिकोण :-

 शिरीष अत्यंत व्यापक और व्यावहारिक दृष्टिकोण का व्यक्ति है .उसका विचार है कि आदर्श का विज्ञापन करने वाली जितनी संस्थाएँ और संगठन हैं ,वे मानवता के उतने बड़े शत्रु हैं .इनसे समाज का कभी कल्याण संभव नहीं है . वे केवल चंदा एकत्र करने और उसकी मलाई खाने में सक्रीय रहते हैं .


इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शिरीष जी का चरित्र कई दृष्टियों से इस उपन्यास में अत्यंत महत्वपूर्ण है . वह अत्यंत सूझ - बूझ वाला व्यवाहरिक पात्र है . वह अंध विश्वास ,कोरा आदर्श और सतही भावुकता के विरुद्ध है 
  1. मुन्नी पात्र सबसे संवेदनशील और दुखी है वह पति द्वारा त्यागी गई पीड़िता है वह समर  से 2 वर्ष छोटी है एक ऐसी अभागी लड़की है जिसके भाग्य में केवल दुख और प्रताड़ना ही है
  2. मुन्नी की चारित्रिक विशेषताएं.........
  3. अभागिनी नारी - एक असहाय अबला  है जिसकी बहुत ही कम उम्र केवल सोलह सत्रह वर्ष की उम्र में ही पढ़ाई छुड़ाकर उसकी शादी कर दी जाती है किंतु वहां भी वह ससुराल वालों द्वारा प्रताड़ित होती रहती है 
  4.  आज्ञाकारी तथा सहनशील नारी --------मुन्नी अन्य भारतीय नारियों की तरह अपने माता पिता की आज्ञा मानने वाली बालिका है कम उम्र में ही उसकी पढ़ाई छुड़वा कर विवाह करना तथा ससुराल वालों द्वारा प्रताड़ित होना और प्रताड़ित होते हुए भी अपने पति द्वारा यातना  पाना और सब कुछ होते हुए भी कुछ ना कहना और फिर पिता के कहने पर दोबारा अपने पति के साथ ससुराल चले जाना उसकी आज्ञाकारी का तथा सहनशीलता को दर्शाता है 
  5. मूकदर्शी  होना ---------मुन्नी एक आदर्श भारतीय नारी की तरह ससुराल में अपने ऊपर होने वाले सारे अत्याचारों को मूक भाव  से सहती है उसकी दशा एक निरीह गाय जैसी है यहां तक की वह प्रभा की पीड़ित परिस्थितियों को भी मूकदर्शक की ही भांति देखती है उसकी मूक  पीड़ा के बारे में लेखक लिखते हैं कि मुन्नी पता नहीं हर वक्त कुछ ना कुछ सोचती रहती है भी या नहीं अधिक से अधिक चुप रहना तथा  तटस्थ रहना ही उसका  स्वभाव हो गया है
  6. तटस्थ रहना तथा  जुबानी हमदर्दी दर्शना --------- मुन्नी को अपनी भाभी प्रभा से सहानुभूति तो है पर वह उस पर पड़ने वाले काम के बोझ को बटांती  नहीं है एक-दो दिन तक तो उसको उसका साथ निभाती है पर फिर बहाने बनाकर काम से दूर होने लगती है वैसे वह जुबानी हमदर्दी हमेशा प्रभा को दर्शाती है   पीड़ित नारी ----मुन्नी एक पीड़ित नारी है तथा इसलिए वह प्रभा की पीड़ा को भली-भांति समझती है इसलिए जब सब प्रभा के छत पर बाल होने के कारण खिलाफ हो जाते हैं तो वह उस का साथ देती है तथा विदाई के समय वो  समर से आग्रह करती है कि भैयाभाभी से बोलना वह निर्दोष है 
  7. दुखी तथा भाग्य हीना------------मुन्नी एक पीड़ित नारी होने के साथ-साथ भाग्य हीन  नारी है जब वह अपने ससुराल में काफी प्रताड़ित और अत्याचार साथी और अत्याचार सहकर अपने मायके आती है तो उसके चोटों के निशान को देखते हुए भी उसके पिता उसे दोबारा उसके पति के साथ ससुराल भेजने भेज  पर मजबूर कर देते हैं जहां वह  ससुराल के अत्याचार से सहती  हुई मारी जाती है
  8.  संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि मुन्नी एक दुखी पीड़िता भाग्य हीन  नारी है

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