छठ पूजा
भारत में गणेश पूजा के बाद से जो पर्वों का सिलसिला शुरू होता है छठ पूजा तक चलता है हिंदुओं के सबसे बड़ा पर्व दीपावली है जो छठ पूजा यानी की पांच दिनों तक चलता है उत्तर प्रदेश तथा बिहार में मनाया जाने वाला ये पर्व केवल एक पर्व ही नहीं बल्कि एक महा पर्व है जो की चार दिनों तक चलता है और बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है । छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाता है यह त्यौहार ऊर्जा के देवता यानि की सूर्य देवता की उपसना के लिए मनाया जाता है ।
मूलत: कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी होने के कारण इसे छठ कहा गया है ।यह वर्ष में दो बार मनाया जाता है एक चैत्र तथा दूसरा कार्तिक महीने में । इस व्रत को स्त्री या पुरुष समान रूप से मानते है ।छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं; उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिला ।लोग इस पर्व को सूर्य देवता की आराधना तथा पृत्वी में जीवन देने के लिए उनका धन्यवाद देते हुए इस पर्व को बड़ी ही तपस्या पूर्वक उनकी पूजा करते है ।चतुर्थी से लेकर सप्तमी तक चार दिन तक चलने वाले इस पर्व में व्रत धारी ३६ घंटे तक का व्रत करते है इस दौरान वे पानी तक भी ग्रहण नहीं करते तो चलिए जानते है कैसे मानते है छठ पर्व :-
१. पहला दिन - नाहय खाय
सबसे पहले घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है फिर छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। भोजन में सेन्धा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी और चने की दाल प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती है
२. दूसरा दिन - खरना
दूसरे दिन व्रतधारी दिनभर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं इस भोजन को खरना का प्रसाद कहा जाता है जिसमे गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा तथा रोटी बनाई जाती है किन्तु इस में नमक और चीनी का प्रयोग वर्जित है इस प्रसाद को खाने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
३. तीसरा दिन - संध्या अर्घ्य
पंचमी की सारा रात जागकर बड़ी ही स्वछता के साथ सष्ठी यानी की छठी मैया को अर्पण करने के लिए प्रसाद बनाया जाता है प्रसाद के रूप में ठेकुआ , चावल के लाडू , फल , फूल आदि चढ़ाया जाता है शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है .
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