साखी
https://imojo.in/f5c2kq इस ebook के माध्यम से आपको सारा आकाश उपन्यास का सारांश , उद्देश्य ,पात्र चरित्र चित्रण और परीक्षा से सम्बंधित प्रश्न उत्तर ,लेखक का परिचय सभी का संक्षिप्त विवरण प्राप्त होगा
कबीरदास -- कबीरदास निर्गुण काव्यधारा के ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवि है संत कबीर अंधविश्वास और पाखंड के कटटर विरोधी थे ! कबीर की रचनाओं मुख्य रूप से तीन रूपों में कबीर ग्रंथवाली में संग्रहित है !
१. साखीकबीरदास -- कबीरदास निर्गुण काव्यधारा के ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवि है संत कबीर अंधविश्वास और पाखंड के कटटर विरोधी थे ! कबीर की रचनाओं मुख्य रूप से तीन रूपों में कबीर ग्रंथवाली में संग्रहित है !
२.सबद
३.रमैनी
कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक है इसलिए इनके राम अथार्थ ईश्वर का कोई रूप नहीं है वे निर्गुण निरंकार परब्रह्म है !
साखी शब्द साक्ष्य से बना है जिसका अर्थ होता है प्रत्यक्ष ज्ञान साखी वस्तुतः दोहा , छंद ही है जिन्हे कबीर ने अपने अनुभवी ज्ञान के आधार पर लिखा है !
1. पीछे लागा जाइ था लोक वेद के साथि
आगैं थैं सतगुरु मिल्या , दीपक दिया हाथि
अर्थ - कबीर जी कहते है में तो लोक संसार के वेद रीती निति नियम मानकर उन पर विश्वास करके अपने जीवन के लक्ष्य विहीन पथ पर आगे बढ़ रहा था किन्तु जब मार्ग में सतगुरु से भेंट हुई और उन्होंने जो ज्ञान रूपी दीपक मेरे हाथ में दिया उसकी लॉ से मेरे समस्त जीवन का अंधकार मिट गया उसके प्रकाश ने मन के अंधकार को मिटा दिया
2. कबीर बादल प्रेम का , हर पर बरष्या आई
अंतरि भीगी आत्मां हरि भई बनराइ
अर्थ - कबीर जी कहते है ज्ञान रूपी दीपक से ईश्वर का प्रेम रूपी बादल हम पर ऐसा बरसा की हमारा तन मन दोनों उस प्रेम से भीग गया जैसे वर्षा होने पर धरती पर सर्वत्र हरियाली दिखाई देती है जब ईश्वर प्रेम की वर्षा करते है तो सब कुछ प्रेममय हो जाता है
3. बासुरि सुख , नाँ रैजि सुख , ना सुख सुपिनैं माहिं
कबीर बिछुट्या राम सूँ, ना सुख धुप न छाँह
अर्थ - कबीर जी कहते है की मेरे राम मेरे ईश्वर जो निर्गुण ब्रह्म है उनसे अलग होकर उनसे बिछुड़ने के बाद उनके सुमिरन के बिना ना तो सुख का अनुभव होता है ना ही रात में ना दिन में ना धुप में ना छाँव में चैन मिलता है अत: ईश्वर के सुमिरन में ही जीवन का सच्चा सुख है
4. मूंवा पीछे जिनि मिलैं , कहैं कबीरा राम
पाथर घाटा लोहं सब , पारस कोणे काम
अर्थ - प्रस्तुत साखी में कबीर जी ने ईश्वर से विरह के दुःख को बड़े ही सुन्दर ढंग से वर्णन किया है कबीर जी कहते है की ईश्वर को जाने बिना उनके सुमिरन के बिना मनुष्य को अगर मृत्यु भी आ जाती है तो उसका क्या लाभ जैसे की लोहे के बदले पथर ले ली पर अब उस के पास अब पारस पाथर भी मिल जायें तो क्या लाभ क्योंकि वह उस पथर को सोना तो बना नहीं सकता ठीक उसी प्रकार मरने पर भी अगर आत्मा को ईश्वर ना मिले तब तो जीवन ही निष्फल है
5. अंखड़ियाँ झांई पड़ी ,पंथ निहारि - निहारि
जीभड़ियाँ छाला पड़्या, राम पुकारि - पुकारि
अर्थ - प्रस्तुत साखी में कबीर जी ने ईश्वर की मनुष्य से विरह वेदना अत्यंत ही सुन्दर ढंग से की है वे कहते है की मनुष्य इस संसार में वेद धरम नियमों का पालन करते करते राम का नाम लेता रहता है तथा ईश्वर की राह तकते तकते आँखों में झाइयां पड़ गयी जीवन पर्यन्त राम का नाम पुकारते पुकारते जीभ में छालें पड़ जातें है फिर भी उसे ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती
6. जो रोऊँ तो बल घटैं, हाँसों तो राम रिसाई
मनहि मांही बिसूरणा ज्यूं घुँण काठहि खाई
अर्थ - प्रस्तुत साखी में कबीर जी ने इस संसार में प्रचलित अंधविस्वास पर कुठाराघात करते हुए सामाजिक मनुष्य की पाखंड से भरी हुई ईश्वर पर आस्था को देखते हुए कहते है की यह सब सांसारिक कृति को देखकर रोऊँ तो आत्मबल घटता है क्योंकि इस पर रोने से तो कोई लाभ नहीं है और अगर इन कृतियों को देखकर हँसता हू तो ईश्वर को बुरा लगेगा क्योंकि की यह संसार भी तो उन्ही की कृति है में क्या करू यह दुःख मेरे मन को ऐसे खा रहा है जैसी घुन लकड़ी को खाता है
7. परवती - परवती मैं फिरयां , नैन गांवए रोइ
सो बूटी पाऊँ नहीं , जातैं जीवन होइ
अर्थ - प्रस्तुत साखी में कबीर जी ने ईश्वर की प्राप्ति के उपाय बतायें है में पर्वत पर्वत घूमता रहा मैंने रो रो कर अपने नैन गावयें पर किसी भी पर्वत या जगह पर वो बूटी वो दवा न मिली जिस से की ईश्वर प्राप्त हो जातें और जिन्हे पाकर में अपना जीवन सफल बना लेता
8. आया था संसार में , देषण कों बहु रूप
कहैं कबीरा संत हौ, पड़ि गयां नजरि अनूप
अर्थ - प्रस्तुत साखी में कबीर जी ने ईश्वर की प्राप्ति के उपाय बतायें है वे कहते है की जब से मैंने इस संसार में जन्म लिया तब से मैंने बहुत से मनुष्यो को जाना तथा उनके अनेको तरह के रूप देखें किन्तु जब मुझे मनुष्य के रूप में संत के दर्शन हुए तो मैं धन्य हो गया क्योंकि उन सच्चे सद्गुरु के आश्रय में मुझे मेरे ईश्वर के दर्शन हो गए मेरा निरर्थक जीवन सफल हो गया
9. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
सब अँधियारा मिटि गया , जब दीपक देख्या माहिं
अर्थ - संत कबीर दास जी कहते हैं की जब इस ह्रदय में "मैं" अर्थात मेरे अहम् का वास था तब इसमें हरि मेरे राम नही थे और अब जब इसमें हरि मेरे राम का वास है तो इसमें से मेरे अहम् का नाश हो चूका है । क्योंकि इस हृदय में जब ज्ञान के प्रकाश का दीपक जला तो वहां का सब अँधियारा मिट गया !
10. तन कों जोगी सब करैं , मन कों विरला कोई
सब विधि सहजै पाइए, जे मन जोगी होइ
अर्थ : शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना शरीर को धार्मिक कपड़ों से ढकना आसान है सरल है,ऐसा चोला पहन कर तो कोई भी जोगी का रूप धारण कर सकता है पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है और कुछ लोग ही अपने मन को भी वश में कर पाते हैं, अपने मन को भी साधू कि तरह शुद्ध केवल असाधारण व्यक्ति ही कर पाते हैं।य़दि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियाँ सहज ही प्राप्त हो जाती हैं.तथा वह इस्वर को प्राप्त कर लेता है !
प्रश्न - पीछे लागा जाइ था लोक वेद के साथि
आगैं थैं सतगुरु मिल्या , दीपक दिया हाथि
कबीर बादल प्रेम का , हर पर बरष्या आई
अंतरि भीगी आत्मां हरि भई बनराइ
१. प्रस्तुत सखी में कबीर क्या कर रहे थे और बाद में उन्हें क्या मिला ?
२. सतगुरु ने उन्हें क्या दिया ? उससे उन्हें क्या लाभ हुआ ?
३. प्रेम के बदल बरसने से क्या हुआ ?
४. प्रस्तुत पंक्तियों का अर्थ लिखिए ?
उत्तर - १. कबीर जी लोक वेद के अनुसार चल रहे थे संसार में कुछ समय बाद उन्हें सतगुरु से भेट हुई
२. सतगुरु ने ज्ञान रूपी दीपक हाथ में दिया जिससे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई !
3. ईश्वर का प्रेम रूपी बादल बरसने से तन मन दोनों उस प्रेम से भीग गया जैसे वर्षा होने पर धरती पर सर्वत्र हरियाली दिखाई देती है जब ईश्वर प्रेम की वर्षा करते है तो सब कुछ प्रेममय हो जाता है !
४. प्रस्तुत पंक्तियोँ में कबीर जी कहते है में तो लोक संसार के वेद रीती निति नियम मानकर उन पर विश्वास करके अपने जीवन के लक्ष्य विहीन पथ पर आगे बढ़ रहा था किन्तु जब मार्ग में सतगुरु से भेंट हुई और उन्होंने जो ज्ञान रूपी दीपक मेरे हाथ में दिया उसकी लॉ से मेरे समस्त जीवन का अंधकार मिट गया उसके प्रकाश ने मन के अंधकार को मिटा दिया !कबीर जी कहते है ज्ञान रूपी दीपक से ईश्वर का प्रेम रूपी बादल हम पर ऐसा बरसा की हमारा तन मन दोनों उस प्रेम से भीग गया जैसे वर्षा होने पर धरती पर सर्वत्र हरियाली दिखाई देती है जब ईश्वर प्रेम की वर्षा करते है तो सब कुछ प्रेममय हो जाता है
बाल लीला
सूरदास - सुर सगुन भक्ति के उपासक तथा अष्ट कवियों में श्रेष्ठ कवि है कृष्ण भक्ति तथा कृष्ण से अनन्य प्रेम उनके रचित पदों में मिलता है!यह भक्ति काल के सगुन धारा के कृष्ण काव्यधारा के प्रमुख कवि है! सूरदास जी जन्म से ही अंधे है किन्तु विद्वानों को इसमें मतभेद है क्योंकि सूरदास जी ने अपनी रचनाओं में कृष्ण जी की लीलाओं का इतना सजीव वर्णन किया है सुर की भाषा ब्रज भाषा है यदपि वे अपने काव्य में संस्कृत , अरबी और फ़ारसी शब्दों का प्रयोग भी किया है अतः सुर का काव्य हिंदी सहित्य की अनूठी धरोहर है !
प्रश्न - सूरदास का भक्ति परिचय और बाल लीला को उदारहण सहित वर्णन कीजिये ?
उत्तर - सूरदास जी सगुन ब्रह्म के उपासक थे यह भक्ति काल के सगुन धारा के कृष्ण काव्यधारा के प्रमुख कवि है सगुन मतलब जिनके ईश्वर का रूप और आकार होता है निर्गुण मतलब जिसके ईश्वर का कोई रूप और आकार नहीं होता कहते है की सूरदास जी जन्म से ही अंधे है किन्तु विद्वानों को इसमें मतभेद है क्योंकि सूरदास जी ने अपनी रचनाओं में कृष्ण जी की लीलाओं का इतना सजीव वर्णन किया है जिसको पढ़कर लगता ही नहीं की कोई अँधा वयक्ति ऐसा वर्णन कर सकता है इस लिए सुरदास जी को वात्स्लय रस का सम्राट कहा जाता है बाल लीलाओं के आलावा कृष्ण के प्रति उनके माता पिता तथा गोपियों के प्रेम लीला का वर्णन भी बहुत ही उत्कृष्ट ढंग से किया है !
प्रस्तुत बाल लीला में भी सूरदास जी ने श्री कृष्ण का बाल रूप , खीजना ,नटखट पन का बड़ा ही मनोहारी दृश्य प्रस्तुत किया है वे कहते है की कृष्ण जी एक हाथ में माखन लिए तथा उनके मुँह में दही लगा हुआ है और उनके कंठ में कठुला धारण किये जब वे घुटनो के बल चलते है तो यह कृष्ण का रूप बड़ा ही मनोहारी है इस रूप की एक झलक से उनका जीवन धन्य हो गया है इस एक झलक पर वो अपने सौ जनम भी न्योछवर कर सकते है !
दूसरे पद में सूरदास जी कहते है की कृष्ण ने अब बोलना सीख लिया है वे यशोदा माँ को मैया तथा नन्द बाबा को बाबा बाबा कहने लगे है और वे अपनी गायों को चराने ले जाते हुए अपने गोपी दोस्तों के साथ खेलते भी है उनकी मैया उन्हें जायदा दूर जाने से मना भी करती है !
इस प्रकार हम देखते है की सुर सगुन भक्ति के उपासक तथा अष्ट कवियों में श्रेष्ठ कवि है कृष्ण भक्ति तथा कृष्ण से अनन्य प्रेम उनके रचित पदों में मिलता है !
प्रश्न - शोभित कर नवनीत .................. का सात कल्प जिए !
१. प्रस्तुत पद्यांश में कौन और कैसे शोभा प् रहे है ?
२. प्रस्तुत पद्यांश में सुर कैसे धन्य हो जाते है ?
३. कृष्ण के बाल कैसे शोभा पातें है ?
४. सुर ने कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन कैसे किया है उदारहण सहित लिखिए ?
उत्तर - १. प्रस्तुत पद्यांश में बाल कृष्ण एक हाथ में माखन लिए तथा मुँह में दही का लेप और माथे पर गोरोचन का तिलक किये शोभायमान हो रहे है !
२.प्रस्तुत पद्यांश में बाल कृष्ण का रूप बड़ा ही मनोहारी है इस रूप की एक झलक से उनका जीवन धन्य हो गया है !
३.बाल कृष्ण की लटकती हुई लटें ऐसी लगती है जैसे मस्त भंवरों का समूह मस्त होकर मधुपान कर रहा हो !
४. प्रस्तुत पद्यांश में भी सूरदास जी ने श्री कृष्ण का बाल रूप का बड़ा ही मनोहारी दृश्य प्रस्तुत किया है वे कहते है की कृष्ण जी एक हाथ में माखन लिए तथा उनके मुँह में दही लगा हुआ है बाल कृष्ण की लटकती हुई लटें ऐसी लगती है जैसे मस्त भंवरों का समूह मस्त होकर मधुपान कर रहा हो और उनके कंठ में कठुला धारण किये जब वे घुटनो के बल चलते है तो यह कृष्ण का रूप बड़ा ही मनोहारी है इस रूप की एक झलक से उनका जीवन धन्य हो गया है इस एक झलक पर वो अपने सौ जनम भी न्योछवर कर सकते है ! इन्ही लीलाओं के माध्यम से वे अपने प्रभु के दर्शन भी कर लेते है !
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ReplyDeleteJay shree ram
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